ANIMAL LAW RIGHTS
★ पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960
पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960 को इस उद्देश्य से अधिनियमित किया था कि जानवरों को अनावश्यक कष्ट के दंड से न गुजरना पड़े। धारा 11 स्पष्ट करती है कि परिवहन के दौरान किसी भी जानवर को नुकसान पहुंचाना एक अपराध है। इस अधिनियम के तहत खचाखच भरे वाहनों में मवेशियों को बांधना गैर-कानूनी है। और तो और, कि सी भी हानिकारक चीज का इंजेक्शन देना और जहरीला खाना परोसना भी गैर-कानूनी है। धारा 11 का ऐसा कोई भी उल्लंघन 100 रुपए या इससे अधिक के अर्थदंड से लेकर तीन महीने की कारावास की सजा को आकर्षित करता है।
★ भारतीय दंड संहिता
भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक, किसी भी जानवर को अपाहिज बनाना या चोट पहुंचाना गैर-कानूनी है। गायों पर तेजाब फेंकने, गली के कुत्तों और बिल्लियों को चोट पहुँचाने जैसे कृत्य भी दंड की परिधि में आते हैं, जो सड़क पर कई लापरवाह चालकों के लिए एक चेतावनी है। कारों द्वारा सड़कों पर कुत्तों, बिल्लियों और गायों को चोट पहुँचाना या मारा जाना भी संहिता के अनुसार गैर-कानूनी है। ऐसे अपराधियों को या तो स्थानीय पशु सुरक्षा समूहों या किसी पुलिस स्टेशन के हवाले कर दिया जाता है और उनके खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज किया जाता है। दोषी को कम से कम 2000 रुपए का जुर्माना और/या 5 साल तक के कारावास की सजा दी जाती है।
★ जानवरों पर कॉस्मेटिक्स प्रयोग भारत में प्रतिबंधित
2014 में भारत ने जानवरों पर कॉस्मेटिक्स प्रयोग पर राष्ट्रव्यापी बैन लगाया था। यह बैन जानवरों की त्वचा पर रसायनों का इस्तेमाल या उन्हें घातक खुराकें देने को गैर-कानूनी बनाता है। इसके अलावा, कोई भी चिकित्सा या शोध संस्थान प्रयोग के उद्देश्य से भटके हुए पशुओं को सड़क से नहीं उठा सकता है। गैर-कानूनी पशु प्रयोगों, जो जानवरों के लिए ‘पर्याप्त पीड़ा का कारण बनते हैं, की रिपोर्ट करने के लिए एक राष्ट्रीय हेल्पलाइन की शुरुआत भी की गयी है।
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हम अपने घरों में पालतू जानवर तो रखते हैं लेकिन जाने-अनजाने में उनके साथ कई बार ऐसे सलूक करते हैं, जो अपराध की श्रेणी में आता है. इसकी हमें सजा भी मिल सकती है. इसी तरह हमारे आसपास घूमने वाले जानवरों के साथ भी हमारा व्यवहार बहुत मायने रखता है. कई ऐसी बातें हैं, जो हमें शायद नहीं मालूम, लेकिन भारतीय कानूनों की नजर से वो भी अपराध की श्रेणी में आते हैं. भारतीय संविधान के तरह 15 ऐसे कानून बनाए गए हैं, जो हमें मालूम होने चाहिए. का
1. अनुच्छेद 51(A) - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A) के मुताबिक, हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है.
2.क्रूएलिटी एक्ट- कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचड़खाने में ही काटा जाएगा. बीमार और गर्भ धारण कर चुके पशुओं को मारा नहीं जाएगा. प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट और फूड सेफ्टी रेगुलेशन में इस बात पर स्पष्ट नियम हैं.
3. पशु को मारना- भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक किसी पशु को मारना या अपंग करना, भले ही वह आवारा क्यों न हो, दंडनीय अपराध है.
4. पशु को आवारा बनाना- प्रिवेंशन ऑफ क्रूएलिटी ऑन एनिमल्स एक्ट (पीसीए) 1960 के मुताबिक किसी पशु को आवारा छोड़ने पर तीन महीने की सजा हो सकती है.
5. बंदरों को सुरक्षा- वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है. कानून कहता है कि बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है.
6. कुत्तों के लिए कानून- इस नियम के तहत कुत्तों को दो श्रेणियों में बांटा गया है. पालतू और आवारा. कोई भी व्यक्ति या स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल ऑपरेशन कर सकती है. उन्हें मारना गैरकानूनी है.
7. खाना-पानी न देना अपराध- जानवर को पर्याप्त भोजन, पानी, शरण देने से इनकार करना और लंबे समय तक बांधे रखना दंडनीय अपराध है. इसके लिए जुर्माना या तीन महीने की सजा या फिर दोनों हो सकते हैं.
8. पशुओं को लड़ाना- पशुओं को लड़ने के लिए भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है.
9. एनिमल टेस्टिंग- ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कॉस्मेटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर टेस्ट किये जा चुके कॉस्मेटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है.
10. बलि पर बैन- स्लॉटरहाउस रूल्स 2001 के मुताबिक देश के किसी भी हिस्से में पशु बलि देना गैरकानूनी है.
11. चिड़ियाघर का नियम- चिड़ियाघर और उसके परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है. पीसीए के तहत ऐसा करने वाले को तीन साल की सजा, 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
12. पशुओं को ले जाना- पशुओं को असुविधा में रखकर, दर्द पहुंचाकर या परेशान करते हुए किसी भी गाड़ी में एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मोटर व्हीकल एक्ट और पीसीए एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है.
13. तमाशा नहीं- पीसीए एक्ट के सेक्शन 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिए ट्रेन करना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है.
14. घोंसले की रक्षा- पंछी या सरीसृप के अंडों को नष्ट करना या उनसे छेड़छाड़ करना या फिर उनके घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा. इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
15- जंगली जानवरों को कैद करना- किसी भी जंगली जानवर को पकड़ना, फंसाना, जहर देना या लालच देना दंडनीय अपराध है. इसके दोषी को सात साल की तक की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।
भारत ‘जूसेडिस्म’ (पशुओं की निर्दय हत्या में आनंद प्राप्त करना) से अछूता नहीं है और यहाँ व्यक्तिगत मनोरंजन के लिए पशुओं की हत्याएं होती रहती हैं। शहरी भारत में कार के नीचे कुत्ते-बिल्लियों का कुचल जाना आम बात है। हालाँकि जानवरों के प्रति निर्दयता इन गतिविधियों से कहीं आगे है। एक सैन्य कर्मी द्वारा चिंकारा का मांस पकाया जाना, भारतीय फिल्म जगत के एक सुपरस्टार द्वारा लुप्तप्राय प्रजाति के हिरण का शिकार करना और हांथी दांत रखना कुछ ऐसी खबरे हैं जो बीच-बीच में चलती रहती हैं।
★ भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम
जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा के लिए बनाये गए भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, शिकार के कृत्य का अर्थ है “किसी जंगली जानवर को कैद करना, हत्या करना, जहर देना, फंदा लगाना या फंसाना”। बल्कि किसी जानवर को चोट पहुँचाना, क्षतिग्रस्त करना या उसके शरीर के अंगों को चुराना भी शिकार कहलाता है। वन्य पक्षियों और सरीसृपों के “अण्डों या घोसलों” में व्यवधान पैदा करना या क्षति पहुंचाना शिकार के बराबर है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया और इन अपराधों के लिए दंड को और भी अधिक कठोर बना दिया गया।
पहली बार अपराध करने वाला कोई कसूरवार व्यक्ति, जो जानवरों का शिकार करता है या आरक्षित वन्य क्षेत्र की सीमाओं को बदलता है, वह कम से कम 10000 रुपए के अर्थदंड और न्यूनतम तीन वर्ष के कठोर कारावास की सजा का पात्र है। अपराध की पुनरावृत्ति में, सजा की अवधि बढ़कर 7 साल और आर्थिक जुर्माना न्यूनतम 25000 रुपए हो सकता है। एक नयी धारा 51A के सम्मिलन के साथ जमानत प्राप्त करने की प्रक्रिया अब और कठिन हो गयी है। इस संशोधन के अनुसार, आरोपी को तब तक जमानत नहीं मिलेगी जब तक अदालत को इस बात पर यकीन करने के लिए “उचित आधार” नहीं मिलते कि व्यक्ति दोषी नहीं है।